जब गुजरात में बुरी तरह हारी थी भाजपा, कांग्रेस की आख़िरी जीत का चुनाव..

आज के समय में भारतीय जनता पार्टी के कई बड़े नेता गुजरात से आते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भी गुजरात से ही आते हैं. इतना ही नहीं संगठन और पार्टी पर भी भाजपा के गुजराती नेताओं की मज़बूत पकड़ दिखती है. इसी बात को समझते हुए मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस भी भाजपा को उसके सबसे मज़बूत गढ़ में घेरने की कोशिश करती दिखती है. इस साल के अंत में गुजरात में विधानसभा चुनाव हैं. ऐसे में कांग्रेस और भाजपा के बीच चुनावी बहस तेज़ हो गई है. इस बार के चुनाव में आम आदमी पार्टी भी अपने आपको मेन-प्लेयर बता रही है.
भाजपा ने पहली बार सन 1990 में यहाँ सरकार बनाई थी. तब भाजपा ने जनता दल के साथ गठबंधन किया था और जनता दल के नेता चिमनभाई पटेल मुख्यमंत्री बने थे. 1995 में भाजपा ने अपने दम पर सरकार बनाई और उसके बाद से लगातार भाजपा ने इस राज्य में चुनाव जीता. कांग्रेस इस राज्य में वापसी के सपने ही देखती रही लेकिन उसे कभी बड़ी कामयाबी नहीं मिली. सन 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पूरे दम-ख़म से चुनाव लड़ा और 32 साल में पहली बार कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी चुनौती दी. इस चुनाव में भाजपा ने 182 में से 99 सीटें जीतीं जबकि कांग्रेस भी 77 सीटें जीतने में कामयाब रही. कांग्रेस की इस परफॉरमेंस ने पार्टी को राज्य में मज़बूत किया और इसीलिए 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कार्यकर्ता भाजपा को हराने के दावे करते दिख रहे हैं. भाजपा के लिए भी ये एक बड़े झटके की तरह था, नरेंद्र मोदी और अमित शाह के गृह राज्य में पार्टी बस किसी तरह सरकार बचाने में कामयाब रही.
2017 में भी लेकिन जीत भाजपा की ही हुई, कांग्रेस गुजरात में एक अदद जीत को तरस रही है. हालाँकि ऐसा नहीं है कि हमेशा से ही यही स्थिति थी. एक समय था जब गुजरात कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था. गुजरात में कांग्रेस ने 1985 तक कोई भी चुनाव नहीं हारा था. ऐसा भी कम ही हुआ था कि कांग्रेस को कोई पार्टी राज्य में टक्कर दे पाए. 1967 के विधानसभा चुनाव में ज़रूर कांग्रेस को स्वतंत्र पार्टी से टक्कर मिली थी लेकिन कांग्रेस बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब रही थी.
कांग्रेस गुजरात में आख़िरी चुनाव 1985 में जीती. 37 साल पहले कांग्रेस जिस चुनाव को जीती थी उसके आँकड़ों को समझने की कोशिश करते हैं. 182 सीटों वाली गुजरात विधानसभा के चुनाव जब हुए तब देशभर में कांग्रेस के पक्ष में माहौल था. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मौत ने कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूतिपूर्ण माहौल बनाया था. गुजरात में कांग्रेस का मज़बूत संगठन था और इमरजेंसी के बाद हुए लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने बाक़ी राज्यों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया था.
कांग्रेस को टक्कर देने के लिए आपसी लड़ाई झेल रही जनता पार्टी थी और 1980 में वजूद में आयी भारतीय जनता पार्टी थी. गुजरात की बड़ी समुद्री सीमा ने राज्य का आर्थिक स्तर पर विकास किया था और यही वजह थी कि ये भारत के बाक़ी राज्यों से आर्थित तौर पर बेहतर स्थिति में था. गुजरात में बड़ा व्यापारी तबक़ा था जो कांग्रेस का समर्थन करता था. जनता पार्टी एक समय इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ अभियान चलाकर केंद्र की सत्ता में आयी थी लेकिन अब वो नारे बहुत कमज़ोर पड़ चुके थे. जनता पार्टी की अंदरूनी लड़ाई ने पार्टी को बुरी तरह तोड़ दिया और केंद्र में इसकी सरकार गिर गई. भाजपा भी जनता पार्टी से ही टूटकर एक दल बना था.
1985 के विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए आसान माने जा रहे थे. कांग्रेस ने इस चुनाव में पिछले चुनावों से भी बेहतर प्रदर्शन किया. कांग्रेस ने कुल 182 में से 149 सीटें जीत लीं. कांग्रेस को 55% से भी अधिक वोट मिले जबकि दूसरे नम्बर पर जनता पार्टी को 14 सीटें मिलीं और 19% से कुछ अधिक वोट मिला. भाजपा को इस चुनाव में क़रीब 15% वोट मिले. निर्दलीय विधायकों की संख्या आठ रही.
कांग्रेस पहली बार 2017 के विधानसभा चुनाव में ही भाजपा को टक्कर देती दिखी है. आख़िर कांग्रेस का मज़बूत गढ़ कैसे भाजपा के पास चला गया और क्यूँ कांग्रेस पिछले इतने चुनावों में वापसी करने में नाकाम रही.