एक ऐसा अनोखा और चमत्कारी मंदिर, जहाँ रातों रात बदल गई थी प्रवेश द्वार की दिशा…

सूर्य देव को प्रत्यक्ष देव कहा जाता है और ऐसी मान्यता है कि सूर्य देव को अर्घ्य देने और उनकी पूजा करने से जीवन में ऊर्जा, मानसिक शांति और सफलता मिलती है। साथ ही अगर कुंडली में सूर्य देव नकारात्मक स्थित है और अगर उनके मंदिर जाकर दर्शन कर लिए जाएं, तो नकारात्मक फलों में कमी आती है। आज बात करते हैं देश के एकमात्र ऐसे सूर्य मंदिर की जिसका मुख्य दरवाजा सूर्य के उगने की दिशा पूरब में न होकर पश्चिम में है।
बिहार के औरंगाबाद जिले में है यह बेहद प्रसिद्ध और अनोखा सूर्य मंदिर जिसका नाम देव सूर्य मंदिर, देवार्क सूर्य मंदिर या देवार्क है। भगवान सूर्य को समर्पित यह मंदिर कई मायनों में बेहद खास है और इससे जुड़ी कई पौराणिक कथाएं भीं हैं, जिन्हें सुनने के बाद आपको शायद उन कथाओं पर सहसा यकीन भी नहीं होगा। ऐसी मान्यता है कि यह मंदिर त्रेता युग में बना था और कहा जाता है कि इस मंदिर का मुख्य द्वार अचानक ही रातों रात पश्चिम दिशा में मुड़ गया था।
मगध में मौजूद पांच सूर्य मंदिरों में है एक मान्यताओं के अनुसार, ऐसे 12 मंदिरों की स्थापना भगवान श्रीकृष्ण और उनकी एक पटरानी जांबवती के पुत्र साम्ब ने की थी। ऐसा उन्होंने एक शाप से छुटकारा पाने के लिए किया था। इन कहानियों के आधार पर पुरातत्ववेताओं ने खोज की तो 11 मंदिर ही मिले। इनमें से पांच मंदिर तो मगध क्षेत्र में ही हैं। इनके नाम हैं- नालंदा जिले मे बड़गांव का सूर्य मंदिर (बड़ार्क), ओंगरी का सूर्य मंदिर (ओंगार्क), औरंगाबाद जिले में देव का सूर्य मंदिर (देवार्क), पटना जिले के पालीगंज में उलार का सूर्य मंदिर (उलार्क) और बाढ़ में पंडारक का सूर्य मंदिर (पुण्यार्क)
कब बना था मंदिर: मंदिर के बाहर पाली लिपि में लिखित अभिलेख है, जिसके आधार पर पुरातत्व विभाग और इतिहासकार इसके बनने का समय छठी-आठवीं शताब्दी के बीच बताते हैं। पौराणिक कथाएं और मान्यताएं इसे त्रेता और द्वापरयुग के बीच के समय में बना बताती हैं। मंदिर के गर्भगृह में भगवान सूर्य के ही तीन रूपों की मान्यता वाले ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिदेव के रूप में विराजमान हैं। गर्भगृह के मुख्य द्वार पर बाईं ओर भगवान सूर्य की प्रतिमा है। भगवान सूर्य की ऐसी प्रतिमा अन्य मंदिरों में देखने को नहीं मिलती है।
मंदिर के द्वार से जुड़ी कथा: ऐसा कहा जाता है कि जब औरंगजेब देव सूर्य मंदिर को तोड़ने आया तो स्थानीय लोग और वहां के पुजारी मंदिर के बाहर एकत्र हो गए और उससे मंदिर न तोड़ने का आग्रह किया लेकिन वह नहीं माना और कहने लगा कि अगर तुम्हारे देवता का ये मुख्य द्वार रात भर में पूर्व से पश्चिम हो जाए तो वह मंदिर नहीं तोड़ेगा।